बाजार में आए काली-लाल सुराही और घड़े, दोनों की अपनी तासीर
रायपुर । गर्मी बढ़ते ही राजधानी में सुराही-मटके की मांग बढ़ गई है। आज भी काफी लोग फ्रिज का पानी पीने के बजाय मटके के पानी से गला तर करना ज्यादा पसंद करते हैं। घड़े में एक तो मिट्टी का सोंधापन होता है, दूसरे उसके पानी की तासीर अलग ही होती है। मटके का पानी गला भी खराब नहीं करता। बाजार में लाल-काली सुराही और घड़े आ गए हैं।
लाल मिट्टी से सामानों की ज्यादा पूछपरख
शहर के बाजार में आई लाल-काली सुराही, मटके की बात करें तो इसमें दोनों में काफी अंतर है। कुम्हारों ने बताया कि गर्मी में प्यास बुझाने के लिए लाल मिट्टी से बने सुराही-मटके की डिमांड अधिक रहती है। वजह यह है कि लाल मिट्टी चट्टानों की टूट-फूट से बनती है और यह पानी के संपर्क में आने से हल्की-हल्की पीली दिखती है। बता दें कि मिट्टी में लोहा, एल्युमिनियम और चूना होता है। कुम्हारों के अनुसार इस कारण से लाल मिट्टी बने सुराही, मटका में पानी अधिक समय ठंडा रहता है। इसके अलावा पीने में भी स्वाद में अच्छा लगता हैं। वहीं काली मिट्टी की बात करें तो इसमें नाइट्रोजन, पोटाश की कमी होती है। इसके अलावा मैग्नेशियम, चूना, लौह तत्व और कार्बनिक पदार्थों की अधिकता होती है। प्रायः इस मिट्टी से बने सुराही, मटके की मांग गर्मी में कम रहती है।
शहर में जीई रोड, कालीबाड़ी, गोलबाजार, आमापारा, महादेवघाट रोड समेत कई जगहों में मिट्टी से बने सुराही, मटका समेत अन्य चीजों का बाजार सज चुका है। वहीं लोगों ने भी मिट्टी के मटकों की खरीदारी शुरू कर दी है। आमापारा में दुकान लगाने वाली कुंती बाई कुम्हार ने बताया कि अभी लाल मटके की डिमांड है। इसके अलावा कई लोग मिट्टी से बने बोतल की डिमांड इस बार ज्यादा कर रहे हैं। शहर में इस समय 50 से 200 रुपये तक कीमत में मटका, सुराही, घड़ा उपलब्ध हैं।
महादेवघाट के कुम्हारों ने बताया कि गर्मी के सीजन में मटका, सुराही (देसी फ्रीज) का बाजार चार महीने तक चलता है। वहीं मटके को बनने के लिए प्रायः लाल मिट्टी खारुन नदी के तट के गांवों से मंगाई जाती है। वहीं जितना बेचने में मेहनत करनी पड़ती है, उतने से ज्यादा बनाने में मेहनत लगती है। इसके ऊपर से महंगाई के जमाने में भी दाम उम्मीद के मुताबिक नहीं मिल पाता है। अभी लोग प्रायः गर्मी कम पड़ने की वजह से ज्यादा ग्राहक नहीं पहुंच रहे हैं।