'पांडव रूपी पुष्पों को एक सूत्र में पिरोने वाला धागा बन पीड़ा सहूंगी'
इंदौर । प्रातः स्मरणीय सती नारियों में 'अहिल्या, द्रौपदी, सीता, तारा और मंदोदरी' का नाम लिया जाता है पर वहीं द्रौपदी के बारे में कई ऐसी बातें भी कही जाती है जो इन स्मरणीय नामों की बात से विपरीत नजर आती है। द्रौपदी ने विवाह तो अर्जुन से किया था पर कुंती के कहने पर शेष पांडू पुत्रों को भी पति के रूप में स्वीकारा। इसकी वजह यही थी कि उन्हें श्रीकृष्ण ने कहा था कि धर्म की स्थापना के लिए तुम्हें इन पांच पांडवों को एक सूत्र में पिरोकर रखना होगा। तब द्रौपदी ने धर्म स्थापना के लिए यह बात स्वीकारते हुए कहा था कि 'मैं ही पांच पांडव रूपी पुष्पों को एक सूत्र में पिरोने वाला धागा बन अपनी पीड़ा सहूंगी'। द्रौपदी पर आधारित ये और अन्य जानकारियां डॉ. माधवी पटेल ने दी।
शहर में जारी खादी बाजार में आयोजित व्याख्यान में डॉ. माधवी ने 'द्रौपदी की आत्मकथा' विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि द्रौपदी न केवल सांवले सौंदर्य से परिपूर्ण सुंदरी थी बल्कि उस युग में वह भक्ति, ज्ञान और कर्म की त्रिवेणी वाली महान महिला थी। पांच पति होने के बावजूद उन्होंने तप के बल पर अपने सतीत्व की रक्षा की। द्रौपदी का एक गुण यह भी था कि वनवास के दौरान वह अन्नापूर्णा भी कहलाई और इसकी वजह यह थी कि वह सभी को भोजन कराकर ही खुद भोजन करती थी। द्रौपदी के पास जो अक्षयपात्र था वह तब तक भरा रहता था जब तक कि द्रौपदी खाना नहीं खा लेती थी। वन में पतियों, ऋषि-मुनियों और पशु-पक्षियों को भोजन कराने के बाद ही वह भोजन करती थी और इसलिए द्रौपदी को आधी रात तक भोजन मिल पाता था।
बेशक द्रौपदी ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि दुशासन के रक्त से ही वह अपने केश धोएगी पर जब रक्त द्रौपदी के बालों में डाला गया तो उसे पश्चाताप भी हुआ कि आखिर ऐसी प्रतिज्ञा क्यों की जिसमें किसी का रक्त अपने शीष पर धारण करना पड़े जबकि रक्त से कभी शांति नहीं मिलती।
धर्म स्थापना के लिए सहा अपमान
द्रौपदी का जन्म यज्ञ से हुआ था और उसमें इतना तेज था कि चीर हरण के वक्त वह अपने तेज से कुरू सभा को जला भी सकती थी, लेकिन पांडू पुत्रों के हाथों धर्म की स्थापना के लिए अपमान सहा और कृष्ण की भक्ति की। इस आयोजन में डॉ. माधवी का स्वागत खादी ग्रामोद्योग आयोग भारत सरकार के राज्य निदेशक प्रवीर कुमार ने किया। इस अवसर पर डॉ. संज्योत योवतीकर व पंकज दुबे भी उपस्थित थे।